प्रेम संसार का सबसे अनमोल उपहार है। हर इंसान अपने जीवन में प्रेम रूपी बीज अवश्य बोता है। प्रेम किसी भी रूप में और कई तरह का हो सकता है जैसे ईश्वर के प्रति , माता - पिता के प्रति या फिर मित्रों के प्रति भी हो सकता है।
लेकिन हम अगर आज के समय की बात करे तो इस प्रेम का स्वरुप सिर्फ विपरीत लिंग के लिए जो अनुभूति होती है उसे ही समझा जाता है। हिन्दू ज्योतिष शास्त्रो में प्रेम-विवाह को लेकर हमेशा से ही दिलचस्पी रही है। मैंने कई प्रेमी युगलों को या फिर लड़के और लड़कियों को ज्योतिषों के यहॉ आते जाते देखा है, परामर्श करते सुना है। हमारी कुंडली में प्रेम विवाह है या नहीं अगर है तो यह विवाह सफल होगा या नहीं इत्यादि ......
ज्योतिषी शास्त्र में कई ऐसी गृह दशाओं का और योगों का वर्णन है , जिनकी वजह से व्यक्ति प्रेम करता है और स्थिति प्रेम विवाह तक आ पहुँचती है।
प्रेम विवाह में करक ग्रहों के साथ यदि अशुभ व क्रूर गृह बैठ जाते है तो प्रेम विवाह में बढ़ आ सकती है। यदि प्रेम विवाह का कुंडली में योग न हो तो प्रेम विवाह नहीं होता। आईए , जानें ऐसे कुछ ज्योतिषीय योगों के बारे में -
प्रेम विवाह के ज्योतिषीय योग -
१. जन्म पत्रिका में मंगल यदि राहू या शनि से युति बना रहा हो तो प्रेम विवाह की संभावना होती है।
२. जब राहू प्रथम भाव यानी लग्न में हो परंतु सातवे भाव पर बृहस्पति की दृष्टी पड़ रही हो तो व्यक्ति परिवार के विरूद्ध जाकर प्रेम-विवाह की तरफ आकर्षित होता है।
३. जब पंचम भाव में राहू या केतु विराजमान हो तो व्यक्ति प्रेम-प्रसंग को विवाह के स्तर पर ले जाता है।
४. जब राहू या केतु की दृष्टी शुक्र या सप्तमेश पर पद रही हो तो प्रेम विवाह की संभावना प्रबल होती है।
५. पंचम भाव के मालिक के साथ उसी भाव में चन्द्रमा या मंगल बैठे हो तो प्रेम विवाह हो सकता है।
६.सप्तम भाव के स्वामी के साथ मंगल या चन्द्रमा सप्तम भाव में हो तो भी प्रेम विवाह का योग बनता है।
७. शुक्र या चन्द्रमा लग्न से पंचम या नवम हो तो प्रेम विवाह करते है।
८.जब सातवे भाव का स्वामी सातवे में हो तो तब भी प्रेम विवाह है।
प्रेम एक दिव्य अलौकिक अनुभव देने वाली स्थिति है। ज्योतिषाचार्यों के अनुसार ग्रहों की युति ही प्रेम को परिणीति की ओर ले जाने के लिए कारक होती है।